मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

मच्छर जनित बीमारी और BBC का मत

मच्छरों के डंक और उनसे फैलने वाली बीमारियों से हम दुनिया में कहीं नहीं बच सकते.
बीबीसी हिन्दी के अनुसार मच्छर से सम्बंधित जानकारी 
मच्छरों के डंक और उनसे फैलने वाली बीमारियों से हम दुनिया में कहीं नहीं बच सकते.

कैरेबियन द्वीपों पर इन दिनों चिकनगुनिया महामारी का रूप ले रहा है. यह दिन में मच्छरों के काटने से होता है. वहाँ 5,900 से अधिक लोग इससे पीड़ित हैं. यह संख्या वहां की आबादी की आधी है. इसके अलावा फ्रेंच गुयाना में भी लोग इससे पीड़ित हैं.

हालांकि हम उन्हें ख़त्म करना चाहते हैं. लेकिन मच्छरों को ख़त्म कर देने का हमारे पारिस्थितकीय तंत्र पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा. मच्छरों के लार्वा पानी में पलते हैं और वयस्क मच्छर परागण के महत्वपूर्ण काम को अंजाम देते हैं.
वे मस्किटोफिश जैसे जलचरों के लिए पौष्टिक आहार भी होते हैं, जो एक दिन में मच्छरों के सैकड़ों लार्वा खा जाती हैं.
हालांकि मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों में मलेरिया सबसे आम है लेकिन इसके अलावा भी वह कई तरह की बीमारियां फैलाते हैं.
यहाँ हम आपको उन पाँच कम जानी जाने वाली और बेहद ख़तरनाक बीमारियों के बारे में बताएंगे जो मच्छरों से हो सकती हैं.

पीत ज्वर या येलो फ़ीवर

इस साल गर्मियों में फ़ुटबाल का विश्वकप देखने के लिए ब्राज़ील जाने वाले प्रशंसकों को सावधान रहना चाहिए, पीत ज्वर से. यह एक वायरस से फैलता है, जो हर साल क़रीब दो लाख लोगों को प्रभावित करता है, इनमें सबसे अधिक लोग उप-सहारा अफ़्रीका के होते हैं.
मच्छरों पर नियंत्रण के बाद पनामा नहर के काम की बहाली में काफी मदद मिली थी, जहाँ 10 में से एक व्यक्ति की मौत पीत ज्वर से हो जाती थी.
किसी व्यक्ति में इस वायरस का संक्रमण हो जाने के कुछ दिन बाद ही उसे पता चलता है. शुरू में ठीक होने के लक्षण दिखाने के बाद इसके क़रीब 15 फ़ीसदी पीड़ित दूसरे और ख़तरनाक़ चरण में पहुंच जाते हैं, जिसमें मृत्युदर 50 फ़ीसदी है.
इसके बाद पीड़ित व्यक्ति में पीलिया के लक्षण दिखाई देते हैं और लीवर में खराबी आने के वजह से उसकी त्वचा और आंखों का सफ़ेद हिस्सा पीला पड़ जाता है.
ब्राज़ील की यात्रा पर जा रहे हर व्यक्ति को इसके लिए एक टीका लगवाने की सलाह दी जाती है.
डेंगू 
दुनिया की आधी आबादी को डेंगू होने का ख़तरा है. इसमें व्यक्ति को तेज़ बुखार, सिरदर्द, आंखों के पीछे दर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और शरीर पर फुंसियां हो जाती हैं. आज से 40 साल पहले ब्राज़ील में डेंगू की बीमारी नहीं थी.
साल 2013 के पहले छह महीनों में वहाँ डेंगू के 16 लाख मामले सामने आए. रियो डि जनेरो में रोज़ इसके छह हज़ार मामले दर्ज किए गए.
इससे बचने के लिए न तो कोई टीका बना है और न कोई ख़ास दवा है. इसलिए इसके पीड़ित को आराम, अधिक से अधिक पानी और बुख़ार कम करने के लिए पैरासिटामोल की गोलियां दी जाती हैं.
गंभीर डेंगू को डेंगू हेमोरैगिक फ़ीवर के नाम से जाना जाता है, जो घातक हो सकता है.
मलेरिया फैलाने वाले एनाफिलीज़ मच्छर, जो रात में काटता है, के विपरीत डेंगू फैलाने वाला एडिस मच्छर दिन में सक्रिय रहता है. लीवरपूल स्कूल ऑफ़ ट्रापिकल मेडिसिन के डॉक्टर फ़िलीप मैककॉल डेंगू के विशेषज्ञ हैं.
वह बताते हैं, ''सूर्योदय होते ही वह काटना शुरू कर देते हैं, जो 10 बजे के बाद से कम होने लगता है क्योंकि गर्मी हो जाती है. वह शाम चार बजे से पांच बजे के बीच एक बार फिर काटना शुरू करते हैं लेकिन रात में सक्रिय नहीं रहते.''



ब्रितानी डॉक्टर अयान पांजा जब मलेशिया में छुट्टियां मना रहे थे, तो वह इससे पीड़ित हो गए. वह कहते हैं, ''अगर ईमानदारी से कहूं तो कुछ दिन तक इस तरह के लक्षण देखकर मुझे लगा कि मैं मरने वाला हूं. लेकिन मुझे क्वालालंपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ मुझे प्लेटलेट्स चढ़ाए गए.''
ख़ून का थक्का बनने से रोकने के लिए प्लेटलेट्स जरूरी होते हैं. डेंगू होने पर बोनमैरो में प्लेटलेट्स बनना बंद हो जाता है. इसलिए डेंगू की गंभीर अवस्था में रक्तस्राव एक बड़ी दिक्कत होता है.

चिकनगुनिया

इसका नाम सुनने में सड़क पर मिलने वाले स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ की तरह लगता है. लेकिन यह एक तकलीफ़देह बीमारी है जिसमें तेज बुख़ार और जोड़ों में दर्द होता है.
स्वीडन स्थित यूरोपियन सेंटर फ़ॉर डिज़ीज कंट्रोल के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर जॉन ग्यूसेक कहते हैं, ''यह कमज़ोर कर देता है. इससे पीड़ित लोग काम नहीं कर सकते और उन्हें जोड़ों में दर्द के साथ बिस्तर पर पड़े रहना होता है.''
चिकनगुनिया का पता पहली बार तंजानिया में 1952 में चला था. इसका नाम किमाकोंडे भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ''विकृत होना.''
ग्यूसेक कहते हैं, ''चिकनगुनिया के मामलों में जोड़ों का दर्द कई हफ़्तों तक रहता है या इसके संक्रमण की वजह से गठिया भी हो सकता है.''
वह कहते हैं, ''हालांकि आमतौर पर यह घातक नहीं होता लेकिन यह कमज़ोर और बुजुर्ग लोगों में मौत का कारण बन सकता है.''



Image copyrightBBC WORLD SERVICE

पिछले नवंबर में अमरीका में चिकनगुनिया का पहला मामला कैरेबिया के सेंट मार्टिन द्प पर सामने आया था. यह जगह इसके मूलस्थान अफ़्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और एशियाई उपमहाद्वीपों से काफी दूर है. इस बीमारी से वहाँ चार मौतें हुई थीं.
अब इसके उत्तरी अमरीका में भी फैल जाने की आशंका है, क्योंकि इसका वायरस ले जाने वाला मच्छर दक्षिणी फ़्लोरिडा और टेक्सान तट पर भी पाया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ 2005 के बाद से भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मालदीव और बर्मा में इसके 19 लाख मामले सामने आए हैं.
अभी इसके इलाज के लिए न तो कोई दवा बनी है और न कोई टीका. इससे बचने का सबसे आसान तरीका यह है कि मच्छरों से बचा जाए. अच्छी बात यह है कि एक बार इसका शिकार हो जाने के बाद शरीर में इसकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और अगली बार संक्रमण की आशंका नहीं रहती है.

ला क्रोसे इंसेफ़लाइटिस




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मच्छर से पैदा होने वाले इस वायरस का नाम अमरीका के विस्कॉन्सिन राज्य के ला क्रोसे शहर के नाम पर पड़ा, जहां पहली बार 1963 में, इसका पता चला था.
हालांकि यह काफी दुर्लभ बीमारी है. अमरीका में हर साल इसके केवल 80-100 मामले ही सामने आते हैं, ख़ासकर बच्चों में. इससे पीड़ितों को बुख़ार, सिरदर्द, मितली, उल्टी, थकान और सुस्ती होती है. इसके बहुत अधिक गंभीर होने पर कब्ज़, बेहोशी या कोमा और लकवे की शिकायत हो सकती है.
इसका वर्णन ढाई हज़ार साल से भी पहले हिंदू और फ़ारसी डॉक्टरों ने किया था. इसके परजीवी कृमि वुकेरेरिया वैनक्रोफ़िट को भी मच्छर ही फैलाते हैं.
गंभीर हो जाने पर यह लिंफटिक फ़ाइलेरिया या हाथीपांव हो सकता है. इसके लार्वा के कृमि बनने में क़रीब एक साल का समय लगता है. इंसान के लसिका तंत्र में इसका संक्रमण होने पर त्वचा के नीचे के ऊतक मोटे होने लगते हैं, ख़ासकर पैर, हाथ, स्तन और जननांगों के.
यह पूरी तरह से इंसान की सुंदरता को प्रभावित करने वाली बीमारी है, जो मच्छरों से फैलती है. इसकी पहचान स्कॉटलैंड के पैट्रिक मैनसन ने चीन में अपने माली में की थी, जो कि फाइलेरिया से पीड़ित था.



फ़ाइलेरिया से प्रभावित लोगImage copyright

इसका शुरुआती स्तर पर इलाज लाभदायक हो सकता है. लेकिन इसके कृमि के वयस्क हो जाने पर उस पर दवाओं का प्रभाव नहीं पड़ता.

मच्छरों से कैसे बचें

मच्छरों से होने वाली बीमारियों को कम करने के लिए यह समझना ज़रूरी है कि ये कीट आखिर किस तरह का व्यवहार करते हैं.
कीटनाशकों के उपयोग के अलावा इन्हें नियंत्रित करने के लिए जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड बांझ मच्छर तैयार किए जा सकते हैं और कीड़े खाने वाले छोटे कीटों का भी उपयोग किया जा सकता है.
लीवरपूल स्कूल ऑफ ट्रापिकल मेडिसिन के प्रोफ़ेसर हिलेरी रैनसन मच्छरों से बचने पर काम कर रही हैं.
वह कहती हैं मच्छरों के प्रजजन स्थल पर ही उन्हें लक्ष्य बनाना ज्यादा कारगर होगा.
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उपरोक्त लेख BBC के सहयोग से है इससे बीबीसी वर्ल्ड की महिमा का मंडान होना है